Dictonary

यदि इस तरह की प्रवृत्ति मनुष्य अपने अंदर विकसित कर ले, तो संसार की विभिन्न सरकारें अपना ज्यादा वक्त मानव-संसाधन के विकास में लगा सकेंगी । अभिव्यक्ति स्वातंन्य की निर्दोषता अथवा सदोषता कभी स्पष्टत: निरपेक्ष नहीं हो सकती-पूर्ण नहीं हो सकती ।
जो मानदण्ड आज की तारीख में उचित एवं प्रासंगिक हैं, वे कल भी उचित एवं प्रासंगिक हों-यह आवश्यक नहीं है । विचार बदलते हैं, दृष्टिकोण बदलते हैं, सामाजिक मानदण्ड बदलते हैं और यह काम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के द्वारा भी हो सकता है-इन्हें सामान्य ढंग से लेना चाहिए और यह संभवत: सही सोच है कि परिवर्तन हमेशा बेहतरी लाता है ।

No comments:

Post a Comment