वस्तुत: धार्मिक रूढ़िवाद एवं बौद्धिक रूढ़िवाद-दोनों ही विचारों की स्वस्थ अभिव्यक्ति में बाधक हैं । व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति के प्रति खुद सतर्कता बरतनी चाहिए । जैसे, मनुष्य अपने चलने के अधिकार का प्रयोग कर समुद्र पर चलने या कुएं में गिरने की कोशिश नहीं करता; उसी प्रकार उसे अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग अपने को अनैतिक या धूर्त बनाने के लिए भी नहीं करना चाहिए ।
यदि इस तरह की प्रवृत्ति मनुष्य अपने अंदर विकसित कर ले, तो संसार की विभिन्न सरकारें अपना ज्यादा वक्त मानव-संसाधन के विकास में लगा सकेंगी । अभिव्यक्ति स्वातंन्य की निर्दोषता अथवा सदोषता कभी स्पष्टत: निरपेक्ष नहीं हो सकती-पूर्ण नहीं हो सकती ।
No comments:
Post a Comment