सामान्यत:, विश्वस्तर पर उदारवादियों एवं प्रगतिशील विचारकों का मुख्य विरोध कलात्मक अभिव्यक्तियों की स्वतंत्रता पर प्रहार के खिलाफ है । चाहे वह साहित्य पर प्रतिबंध के रूप में हो या फिल्म पर सेंसर के रूप में या किसी अन्य प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति में ।
इसमें तो शायद कोई दो राय नहीं कि वीभत्स अश्लीलता एवं कूर हिंसा की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगना ही चाहिए । परंतु शेष अन्य विचारों या धारणाओं के स्तर पर कोई प्रतिबंध उचित नहीं है-कलाकार को सर्जना की और दर्शक-पाठक को उनमें अपनी पसंद के चयन की छूट होनी ही चाहिए ।
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